शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक’…
हिंदी शिक्षक बंधु की संचालिका प्रो. वशिनी शर्मा की पुण्यस्मृति को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मोद्लिंगुया, विचारक और मंच केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा आज 16 जनवरी, 2021 को शाम 5 बजे Zoom पर ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम को यूट्यूब के जरिये modlingua channel पर भी प्रसारित किया गया. इस कार्यक्रम का संयोजन modlingua learning के निदेशक रवि कुमार और केंद्रीय हिंदी संस्थान के IT के प्राध्यापक श्री अनुपम श्रीवास्तव ने संयुक्त रूप में किया. इस ई-संगोष्ठी में वशिनी जी के चार से भी अधिक दशकों तक साथ रहे उनके सहकर्मी विद्वानों ने भी भाग लिया. ई-संगोष्ठी के आरंभ में अपनी अभिन्न मित्र और सहयोगी को स्नेहसिक्त श्रद्धांजलि देते हुए हिंदी के प्रख्यात कवि पद्मश्री अशोक चक्रधर को उद्धृत करते हुए रेल मंत्रालय के पूर्व निदेशक (राजभाषा) विजय कुमार मल्होत्रा ने कहा कि वशिनी जी के जाने से हिंदी बहुत दुःखी हो गई है. श्री मल्होत्रा ने उनकी बालसुलभ जिज्ञासा के गुण की ओर इंगित करते हुए बताया कि उन्होंने हैदराबाद में उनके साथ मिलकर रेलवे के उद्घोषकों और चल टिकट निरीक्षकों को हिंदी का शुद्ध उच्चारण करने के लिए विशेष पाठ्यक्रम तैयार किये थे. हिंदी के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. जगन्नाथन् ने इस बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि संस्थान के हैदराबाद केंद्र द्वारा संचालित नवीकरण पाठ्यक्रमों में नवप्रवर्तन को शामिल करने में वशिनी जी की विशेष भूमिका रही. उन्होंने अनेक भाषा खेल बनाए. डाकियों के लिए भी पाठ्यक्रम चलाये. प्रो. जगन्नाथन् की आरंभिक पुस्तक ‘प्रयोग और प्रयोग’ में सम्मिलित हैदराबादी हिंदी पर लिखे उनके लेख की चर्चा करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान के IT के प्राध्यापक श्री अनुपम श्रीवास्तव ने इसे एक शोधपरक लेख बताया और गालिब के शब्दों में कहा, ‘शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक’. संस्थान की निदेशक प्रो. बीना शर्मा ने उन्हें अजातशत्रु के रूप में याद करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की.
केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष श्री अनिल जोशी ने उन्हें अपनी भाव-भीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने हिंदी शिक्षण को अपनी ममता और स्नेह से सिंचित किया. उनके वरिष्ठ सहयोगी प्रो. के. के. गोस्वामी ने कहा कि वह किसी भी विद्वान् के कृतित्व को भरपूर सम्मान देती थीं. अपनी गुरुतुल्य सहेली को रुँधे गले से स्मरण करते हुए उनकी सहकर्मी प्रो. मीरा सरीन ने बताया कि वह अपने शैक्षणिक कार्यों की व्यस्तता में भी अपने पारिवारिक दायित्वों की अवहेलना नहीं करती थीं. वशिनी जी के घर का माहौल पूरी तरह शैक्षणिक था. उनके माता-पिता घर पर संस्कृत में ही बातचीत करते थे.
वशिनी जी के सुपुत्र विक्रांत शास्त्री ने अपनी स्नेहमयी माँ को याद करते हुए कहा कि वह यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि वे उनके साथ नहीं हैं. अपने पिता श्री सीताराम शास्त्री और अपनी माँ के पारिवारिक जीवन की चर्चा करते हुए विक्रांत ने बताया कि उनके माता-पिता एक दूसरे के पूरक थे. अगर माँ अपनी मेज़ पर बैठकर कुछ लेखन कार्य कर रही होती थीं तो उनके पिता रसोई का काम देखते थे. उनके पिता ने ही उन्हें IT के क्षेत्र में पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया. चार दशक की अपनी सहकर्मी वशिनी जी की चर्चा करते हुए प्रो. अश्विनी श्रीवास्तव ने बताया कि भाषा प्रौद्योगिकी के लिए भाषा प्रयोगशाला के निर्माण के लिए उन्होंने वशिनी जी के साथ मिलकर कार्य किया था.
अमरीका के पेंसिल्वेनिया विवि के वयोवृद्ध प्रोफ़ेसर सुरेंद्र गंभीर ने वशिनी जी के साथ संपन्न अपनी दो परियोजनाओं की चर्चा करते हुए बताया कि Business Hindi की महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने उन्होंने जो अथक परिश्रम किया, वह बहुत ही प्रशंसनीय था. आगरा प्रवास में उनके घर पर ठहर कर उन्होंने देखा कि तीन पीढ़ियाँ कैसे मिलकर एक साथ रह सकती हैं. प्रो. जगन्नाथन् ने भी उनके घर के माहौल को याद करते हुए कहा कि उनके घर का वातावरण बहुत आत्मीय और सहज था. उन्होंने बताया कि वशिनी जी से उनकी पहली मुलाकात सीताराम जी की दुलहन के रूप में हुई. मृदुभाषी, स्मितवदना, उनकी आँखों से सौहार्द झलकता था. संस्थान के लोग कहते थे कि ईश्वर ने अच्छी जोड़ी मिलायी है. दोनों मिलनसार थे, काम के प्रति दत्तचित्त थे. दीन-दुनिया से कुछ लेना-देना नहीं, हमेशा शैक्षिक कार्यों में लीन रहते थे. संस्थान के कार्यों से जुड़ने के लिए वशिनी जी ने भाषाविज्ञान में एम.ए. किया, वाक् विकारों पर विशेषज्ञता प्राप्त की. दोनों ने मिलकर मनोभाषाविज्ञान पर पुस्तक लिखी. उनमें कार्य के प्रति निष्ठा भाव था. दुर्भाग्य से सीताराम शास्त्री जल्दी चले गये, फिर भी वशिनी जी हिम्मत नहीं हारी, अकेले ही बच्चों को सम्हाला, उन्हें चारित्रिक विकास की प्रेरणा दी.
श्रद्धांजलि की गोष्ठी का समापन करते हुए श्री अनुपम श्रीवास्तव ने बताया कि भाषा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वशिनी जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वशिनी जी वाक् चिकित्सा की भी विशेषज्ञ थीं. वह कभी निराश नहीं होती थीं. श्री मल्होत्रा ने वशिनी जी को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए संस्थान के सामने तीन संकल्प रखे. ये संकल्प अधूरे रहने के कारण वह अंतिम समय में भी विचलित रहती थीं.
संकल्प 1
प्रो. जगन्नाथन् के निर्देशन में श्रीमती वशिनी शर्मा, श्री जैसवाल और श्री अश्विनी श्रीवास्तव के सहयोग से निर्मित जिस मानक हिंदी पाठ्यक्रम की रूपरेखा को न्यूयॉर्क में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन के विशेष सत्र में स्वीकार किया गया था, उसे कार्यान्वित करने के लिए संस्थान आवश्यक कदम उठाये जाएँ.
संकल्प 2
सी डैक, पुणे के सहयोग से प्रो. अशोक चक्रधर के निर्देशन में प्रो. जगन्नाथन्, प्रो. सुरेंद्र गंभीर और प्रो. विमलेश कांति वर्मा, प्रो. वशिनी शर्मा और विजय कुमार मल्होत्रा (सदस्य सचिव) द्वारा तैयार की गई जिस रूपरेखा को मॉरीशस में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में स्वीकार किया गया था, उसे आगे बढ़ाने के लिए विदेश मंत्रालय से संपर्क किया जाए.
संकल्प 3.
विदेशी छात्रों को बोलचाल की हिंदी सिखाने के लिए प्रो. वशिनी शर्मा के सहयोग से विजय कुमार मल्होत्रा द्वारा हिंदी फ़िल्मों के गीत-संगीत और संवादों पर आधारित जिस EDUTAINMENT की परिकल्पना की गई थी, उसके आधार पर संस्थान द्वारा ऑन लाइन मल्टी मीडिया शिक्षण का पाठ्यक्रम चलाया जाए.
कनाडा से प्रकाशित 'वसुधा' हिंदी साहित्यिक पत्रिका की संपादक-प्रकाशक श्रीमती स्नेहा ठाकुर ने ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की प्रतिमूर्ति प्रो. वशिनी शर्मा की दिवंगत आत्मा के लिए गीता के श्लोक ‘अछेद्योS यमदाह्योSयमक्लेद्योSशोष्य एव च’ का पाठ करते हुए उनकी आत्मा की शांति की कामना की.